Wednesday, November 30, 2011

I am illegally put in confinement just for being a Hindu : Swami Aseemananda.


असीमानंद ने कहा, मुझे हिंदू होने की सजा मिली
डीके सिंह | आभार : जनसत्ता 

नई दिल्ली, 28 नवंबर। मालेगांव विस्फोट के सिलसिले में सात मुसलमानों की रिहाई के अदालती फैसले पर स्वामी असीमानंद ने सवाल उठाया है। उनका कहना है कि उन्होंने इस बारे में दवाब में बयान दिया था। पहले उन्होंने विस्फोट के लिए कथित तौर पर हिंदू चरमपंथियों को जिम्मेदार बताया था। असीमानंद के इस बयान के बाद अदालत ने इस कांड में गिरफ्तार सात मुसलमानों को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए थे। लेकिन असीमानंद का कहना है कि वे उस बयान से मुकर चुके हैं।राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील को भेजे एक ज्ञापन में असीमानंद ने यह आरोप भी लगाया है कि उन्हें ‘उनके धर्म के कारण’ प्रताड़ित किया जा रहा है। इस ज्ञापन की प्रतिलिपि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी भेजी गई है। अपने बयान में नबकुमार सरकार उर्फ असीमानंद ने कहा है: ‘दबाव में दिए उस बयान को, जो वापस लिया जा चुका है, मालेगांव कांड के अभियुक्तों के पक्ष में कैसे माना माना जा सकता है, जबकि किसी अदालत ने मेरे वापस लिए गए बयान पर व्यवस्था नहीं दी है? राष्ट्रीय जांच एजंसी (एनआईए) ने किस बिना पर विस्फोटों के अभियुक्तों की जमानत का समर्थन किया। ये अभियुक्त पहले ही अपराध स्वीकार कर चुके हैं और इस बाबत जानकारियां भारत सरकार ने अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र से साझा की हंै?’ असीमानंद को 2007 में मक्का मसजिद विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।

असीमानंद का कहना है: ‘यह न्याय का कैसा उपहास है! एक तरफ दबाव में दिए बयानों के आधार पर मेरे जैसे हिंदू संन्यासी को जांच एजंसियां और सरकार के हाथों अकल्पनीय और असहनीय अपमान झेलना पड़ रहा है और दूसरी ओर गृह मंत्रालय और एनआईए के रुख के कारण मालेगांव कांड के अभियुक्तों को जमानत दे दी गई।’

नवंबर 2010 में स्वामी असीमानंद को सीबीआई अधिकारियों ने हरिद्वार में गिरफ्तार किया था। वे दिल्ली की तरफ आ रहे थे। उन्होंने अपने ज्ञापन में कहा है कि सीबीआई अधिकारियों ने रास्ते में कई बार अंधेरे में गाड़ी रोककर मुझे जमीन पर रेंगने को मजबूर किया। मेरी कनपटी पर पिस्तौल रखकर उन्होंने धमकी दी कि अगर उनका कहा नहीं माना तो वे मुझे गोली मार देंगे। मेरे इनकार करने पर उन्होंने धमकी दी कि वे सामने से आने वाले वाहनों के सामने धकेल देंगे और मेरी मौत को हादसे का रूप दे देंगे। इस हालत में मैंने शर्म के साथ महसूस किया कि एक हिंदू के नाते मेरे कोई मानवाधिकार नहीं हैं। अपने धर्म के कारण मुझे प्रतारणा झेलनी पड़ी। हिरासत में मुझे तनहाई में रखा गया। सारी उम्मीदें खो देने के बाद, और अपने परिवार के सदस्यों को बचाने के लिए मैं उनके दबाव, जुल्म के आगे झुक गया।’

उनका आरोप है कि सीबीआई अधिकारियों ने 164 बयान देने के लिए उन्हें ‘यातना’ दी। न्यायिक हिरासत में भी सीबीआई और एनआईए अधिकारियोंने बिना रोकटोक नियमविरुद्ध उनसे पूछताछ की। ‘कई बार आधी रात के बाद भी मुझसे बेजा बरताव किया गया और कई विस्फोटों के अभियुक्त की तरह पूछताछ की गई। उन्होंने यह धमकी भी दी कि अगर मंैने उनकी बात नहीं मानी तो मेरी मां, भाई और अन्य नातेदारों को जान से मार देंगे।’

असीमानंद ने आगे कहा है कि 18 दिसंबर, 2010 को जब उन्हें दिल्ली में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, सीबीआई अधिकारी सादे कपड़ों में वहां मौजूद थे। उनमें से एक ने उन्हें ‘निर्देशों’ के अनुसार चलने को कहा और उन्होंने एक टाइप किया बयान दिया।
उनके अनुसार ‘भारी मानसिक और शारीरिक दबाव के कारण मैं मजिस्ट्रेट के सामने यह कहने का साहस नहीं जुटा सका कि मैं यह यह बयान मजबूरी में दे रहा हूं।’
 

असीमानंद ने ‘असहनीय शारीरिक प्रताड़ना’ का स्पष्ट ब्योरा देते हुए कहा है कि ‘ उन लोगों ने संकेत दिया कि अगर मैं उनके कहे मुताबिक नहीं चला तो मेरी मां को हुबली से लाया जाएगा। उनके सामने मुझे नग्न करके अपमानित किया जाएगा।’


‘जब मैं न्यायिक हिरासत में तिहाड़ में था, मुझे कोठरी में दो मुसलिम कैदियों के साथ रखा गया। वे मेरे बारे में जानते थे। मैं विचित्र हालत में था। मेरे पास धमकियों का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं थी। मैंने वही किया जो सीबीआई अधिकारी चाहते थे।’

उन्होंने कहा कि पंद्रह जनवरी, 2011 को उन्हें केंद्रीय जेल अंबाला के ‘उप’ अधीक्षक के कक्ष में ले जाया गया, जहां एनआईए अधिकारी मौजूद थे। उन्होंने उन्हें बयान का प्रारूप दिया और निर्देश दिया कि वे इस बयान को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करें।

‘अधिकारियों के इस दबाव के बाद मैंने पंचकूला कोर्ट में यही बयान दिया। राजस्थान एटीएस ने भी उन पर दबाव डाला कि वे एक अर्जी लिखें और अजमेर बम कांड में वादामाफ गवाह बन जाएं।’

असीमानंद ने अपने ज्ञापन में कहा है: ‘राष्ट्रपति महोदया, मैंने अकल्पनीय शारीरिक और मानसिक दबाव में अपराध स्वीकार करने का बयान दिया था। किसी भी अदालत ने इस बयान पर व्यवस्था नहीं दी। मालेगांव कांड के अभियुक्तों को, मेरे वापस लिए गए बयान के आधार पर, क्यों जमानत दी गई, जबकि इस मामले में वे अपना अपराध स्वीकार कर चुके थे। मुझे लगता है कि मुझे हिंदू होने के कारण निशाना बनाया गया।’

उन्होंने यह भी कहा है कि ‘राष्ट्रपति महोदया, यह बात हैरतनाक है कि समझौता बम कांड में लश्करे-तैयबा और हूजी आतंकवादियों का हाथ सिद्ध होने और इस बाबत अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र को सूचना देने के बाद गृह मंत्रालय ने पलटी मार ली और जबरन लिए बयान के आधार पर कार्रवाई करने में लग गया, जबकि इस बयान से मैं पलट चुका था।’






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